“बस इतनी जरूरत है”
कुछ फूल निकले बगीचे से, प्यारे से मासूम से,
कुछ मंदिर को तो कुछ मस्जिद को जा पहुंचे,
मंजिल तो है वही उनकी,
बस पहुँचाने की जरूरत है |
फितरत तो इंसा की भी कुछ फूलों के जैसी,
खुशबू तो हर में है,
बेइंतहा और बेहिसाब,
बस अंदर के इंसान को, जगाने की जरूरत है |
कोशिश की कीमत को इक बच्चे से तुम पूछो,
मुस्कराकर वोह जमाने को बदलता है,
दुख तो मेहमान है बस दो चार दिन का ही,
जिंदगी को जीने के लिए, मुस्कुराने की जरूरत है |
एक कदम की ताकत का अंदाज़ा नहीं हमको,
फासले लाख हों और मंजिल बेनिशान मगर,
हर फासले मिटाने को,
बस एक कदम बढाने की जरूरत है |
बेहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत है,
जब हरसूँ फैला हो बस घनघोर अँधियारा,
मझधार में हो नैया और दूर हो किनारा,
तब चिंगारी से इक शमा को जलने की जरूरत है |
धूल की क्या हस्ती जो शैतानों से भिड जाये,
हलकी फूंक से वोह बस यूही उड़ जाये,
पर शैतानों को रुलाने को,
इक धूल की आंधी की जरूरत है |
इस वतन को लूटा है,
गैरों ने नहीं गद्दारों ने,
जो बैठा है घमंड कर ताकत की ऊंचाई पर,
आज उसे चोराहे पर लाने की जरूरत है |
भर चुका है पाप का घड़ा जिनका,
रोक न पाएंगे हर कोशिश कर पहरेदार उनके,
वक्त तो कबका पूरा हो गया है,
आगे बड इक ठोकर लगाने की जरूरत है |
2 comments:
Can't read in WP7; Should I call helpdesk or vent my anger in twitter ?
@shiploo: its written in hindi. i had thought of the technical issue. in future i will restrict myself to english. you can try desktop or laptop(vista/ie). in this part of the world we still use them.. ha ha..
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